अपने हर सू तो आइना रक्खा।

हुस्न ने था मुझे बना रक्खा।।


मुझको आशिक़ नया नया कहकर

उसने दिलवर  कोई नया रक्खा।।


मर न पाया न जी सका खुलकर

उसने जैसे कि अधमरा रक्खा।।


दूर रहने नहीं दिया उसने

पास रख्खा तो फासला रक्खा।।


भूल जाने को कर लिये आशिक़

याद करने को एक ख़ुदा रक्खा।।

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