आज लिखने का समय हैं, मौन हो तुम
पीढियां कोसेंगी तुम को ,ये न समझो
वेध देंगे शब्द शर शैय्या बनाकर
उत्तरायण की प्रतीक्षा में धरा पर
पूर्व उसके द्रोपदी सहसा ठठाकर
पूछ लेगी उस घडी क्यों मौन थे तुम
दे न पाओगे कोई उत्तर पितामह
अश्रु आँखों से बहेंगे ,कंठ रह रह-
कर कहेंगे वेदना टोकेगी मत कह
अब भला क्या उस समय तो मौन थे तुम
और शब्दों से बिंधे तुम याचना में
मृत्यु मांगोगे व्यथा में वेदना में
भाव प्रायश्चित के होंगे याचना में
मृत्यु हंस देगी कहेगी कौन हो तुम
और तड़पो और तड़पो और तड़पो
और हर अन्याय पर तुम आँख मूँदो
सत्य को असहाय छोडो साथ मत दो
युग युगों तक शब्द शरशायी रहो तुम
देख कर अन्याय क्यूँकर मौन थे तुम।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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