कोई दीवार है  न   दर कोई।

आसमां में कहाँ है घर कोई।।


रूह की रहती है तलाश किसे

जिस्म तो ढूँढता है हर कोई।।


छुप के रहना समझ नहीं आया

क्या उसे है बशर से डर कोई।।


हर कोई तो ख़ुदा नहीं होगा

जबकि हर इक में है हुनर कोई।।


किसको शिव की उपाधि दे दें हम

आज पीता नहीं जहर कोई।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है