जिन्दगी के गीत गाना आ गया।

हां हमें भी मुस्कुराना आ गया।।


बिन सुने भी दिल ने वो सब सुन लिया

बिन कहे सब कुछ बताना आ गया।।


शक सुब्हा यूं दुश्मनों पर कम हुए

दोस्तों को आजमाना आ गया।।


उसने बोला था सम्हलना सीख लो

और हमको लड़खड़ाना आ गया।।


उसको नाकाबिल समझिए साहनी

जिसको भी खाना कमाना आ गया।।


 दौलतेगम पाके उनसे यूं लगा

हाथ कारूं का खज़ाना आ गया।।


लौट आया हुस्न फिर बाज़ार से

क्या मुहब्बत का ज़माना आ गया।।


सुरेश साहनी,कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है