सचमुच है यदि गाँव से कवि जी इतना प्यार।

क्यों शहरों की धूल को फांक रहे हो यार।।

छल प्रपंच का गर्भ है गांवों की चौपाल।

मेड़ मेड़ पर द्वेष है हर खलिहान बवाल।।

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