क्यों उसने यही बात ज़रूरी नहीं समझी।

दिन गिनता रहा रात ज़रूरी नहीं समझी।

दुनिया के मसावात को बेशक़ दी तवज्जो

अपनों से मुलाकात ज़रूरी नहीं समझी।।साहनी

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