कब तक मुर्दा ख़्वाब सँजोया ज़् सकता है।
आख़िर ख़ुद को कितना ढोया जा सकता है।।
क्या अब भी कुछ ऐसे कंधे मिलते होंगे
वो जिन् पर सिर रख कर रोया जा सकता है।।
फिर तुम जिस की ख़ातिर खोये से रहते हो
उस की ख़ातिर क्या क्या खोया जा सकता है।।
फिर उसकी याद आयी है इक हुक उठी है
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