तुम वहां अक्सीर से रूठे रहे।
हम हमारी पीर से रूठे रहे।।
बादशाही को ख़ुदाई मानकर
लोग बस जंज़ीर से रूठे रहे।।
बात तब थी रोकते बुनियाद को
सब महज़ तामीर से रूठे रहे।।
यूँ भी इतना हक़ रियाया को नहीं
आप कब जागीर से रूठे रहे।।
वो मुक़द्दर हाथ आया ही नहीं
हम कहाँ तदबीर से रूठे रहे।।
तुम ने सर पटका न हो दीवार पर
हम मगर प्राचीर से रूठे रहे।।
तुम जहाँ परवाह के मोहताज़ थे
हम वहीं तौक़ीर से रूठे रहे।।
आईने को तुम न समझे उम्र भर
अपनी ही तस्वीर से रूठे रहे।।
साहनी हर हाल में था कैफ में
और तुम तक़दीर से रूठे रहे।।
अक्सीर/ रामबाण औषधि, तक़दीर/भाग्य
ख़ुदाई/ईश्वरीय, तामीर/निर्माण, तदबीर/कर्म
प्राचीर/दीवार, तौक़ीर/सम्मान, कैफ़/आनंद
सुरेश साहनी अदीब
Suresh Sahani कानपुर
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