बीती सुधियों के साथ अभी
जगने की फुर्सत किसको है
कुछ देर मुझे जी लेने दो
मरने की फुर्सत किसको है।।
दो-चार मुहब्बत के आँसू
रो लूँ तुमको आपत्ति न हो
अपनी खुशियों में पागल हो
हँसने की फुर्सत किसको है।।
ये पोखर ताल तलैया वन
उपवन मजरे सब अपने हैं
वरना सागर तक जाना है
रुकने की फुर्सत किसको है।।
आनन्द दायिनी पीड़ा को
जी लेने में कितना सुख हो
पर आपाधापी के युग मे
सहने की फुर्सत किसको है।।......
सुरेश साहनी, कानपुर
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