दर्द है उनकी कमर में लेकिन।

पांव लटके हैं क़बर में लेकिन।।

हुस्न है उनकी पकड़ से बाहर

इश्क़ है उनकी नज़र में लेकिन।।

रात को तौबा भी कर लेते हैं

भूल जाते हैं फ़ज़र में लेकिन।।

हिलता रहता है सरापा उनका

शौक़ है उनके जिगर में लेकिन।।

रस्सियां जल के बुझी चाहे हैं

अब भी ऐंठन है बशर में लेकिन।।

रात ढलनी है चिरागों सच है

वक्त है अब भी सहर में लेकिन।।

सुरेशसाहनी

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