फुटबॉल भारत का राष्ट्रीय खेल है।एक बच्चे ने जीके में यही उत्तर दिया था।बाकी के बच्चे हँस दिए थे।क्योंकि वे सब जानते थे कि नए भारत का राष्ट्रीय खेल फुटबाल नहीं क्रिकेट है। पता नहीं किसलिए किताबों में क्रिकेट की जगह हॉकी लिखा रहता है। उससे अच्छी जानकारी तो गूगल बाबा देते हैं।जैसे गूगल पर इन दिनों नेहरू जी को मुसलमान और हर विपक्ष समर्थक को देशद्रोही बताया जा रहा है।

  वैसे तो भारत मे पूरा सिस्टम ही फुटबाल है तथा सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष दो टीम हैं। हमारे देश की जनता भी फुटबाल ही है, जिससे नेता और नौकरशाह खेलते रहते हैं। कई बार तो पार्टियां अच्छे खासे नेता को फुटबाल बना देती हैं।समझदार नेता अपनी हवा खुद ही निकाल कर चुपचाप कोना पकड़ लेता है।

 लेकिन बात तो असली फुटबॉल की चल रही है। पता नहीं क्यों हमारे अनूप शुक्ल जी ने इस पर जुगलबन्दी की बात चला दी।जबकि भारत मे फुटबाल गोलबंदी से जुड़ा विषय है।

फिलहाल हमारा मीडिया दस पन्द्रह दिन फुटबाल मय हो जाता है।स्टूडियो बड़े मैदान सा नजर आएगा। एंकर फुटबाल की तरह उच्छलते मचलते नजर आएंगे।पता नहीं कहाँ से दिल्ली के आसपास से तीन चार अंतरराष्ट्रीय फुटबाल विशेषज्ञ भी मिल जाते हैं।अब एंकर उनसे पूछेगा,सर!आप तो पुराने समय से फुटबाल से जुड़े हैं। कुछ इस बारे में बताएं।

एक विशेषज्ञ बताएगा, देखिये मेरी आजादपुर मंडी में फुटबॉल की खानदानी दुकान है।वो जो अपना पेले है,बचपन से मेरी दुकान पर आया करता था।मेरे दादा जी उसे अक्सर फुटबाल दे दिया करते थे। फिर बाद में वो स्टार बन गया।

एंकर एक किकदार सवाल उछालता है ,पर पेले तो इण्डिया कभी आया ही नहीं।

विशेषज्ञ तुरन्त बतायेगा ,भाई मैंने बताया ना मेरी खानदानी दुकान है।उसकी एक ब्रांच ब्राज़ील में भी थी।पेले के पिताजी शादी के बाद वहां आते थे।

 दूसरा विशेषज्ञ फुटबाल का इतिहास बताता है। दरअसल फुटबाल की खोज हमारे यहां ही हुई थी।सतयुग में एक फुटौवा नाम का राक्षस था। उसके लम्बे लम्बे बाल हुआ करते थे।वो उछल उछल कर ऋषि- मुनियों को परेशान करता था एक बार एक ऋषि ने उसे गेंद बन जाने का श्राप दे दिया।और उसे फुटबॉल कहा जाने लगा। हमारे भगवान कृष्ण भी फुटबॉल खेला करते थे।

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