इतिहास मेरा प्रिय विषय रहा है।लेकिन फंतासी,किंवदंतियां,और पौराणिक कथाएं मुझे सरलता से याद हुयीं।कारण साफ था , इनमें तिथियां याद करने का झमेला नहीं रहा।कहीं से कुछ भी उठाकर बोल दो कोई सवाल नहीं खड़ा होता।मैं खुद लोगों को ऐसी दंतकथाएं सुनाता रहता हूँ।लेकिन यह भी सत्य है कि इन कथाओं का मन्तव्य समाज मे लोगों को सन्मार्ग पर ले जाना और परोपकार के लिए प्रेरित करना ही रहता है।जैसे कि- गुरु मछिंदरनाथ अपने दस हजार शिष्यों के साथ हिमालय में आज भी विचरण करते हैं।

 हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने भी इसी का सहारा लिया। उनकी बात से तथाकथित प्रगतिशील लोग इत्तेफ़ाक़ रखते हों अथवा न रखते हों ,पूर्वांचल की भोली भाली, धर्मभीरु शिक्षित,और अनपढ़ गंवार जनता पूरी तरह प्रभावित होती है और हुई है। भारतीय जनता को पश्चिम का वैज्ञानिक दृष्टिकोण,मार्क्स के द्वंदात्मक भौतिकवाद और सुरेश साहनी के #समन्वयवाद से ज्यादा मतलब नहीं है। उसे लालू जी और मोदी जी की तरह उनकी दुखती रगों को सहलाने वाली और उनसे अंतरंगता का एहसास कराने वाली आत्मीय भाषा अधिक आत्मीय लगती है।

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