एक दारूबाज को पुलिस का सिपाही डपट कर बोला, -क्या कर रहा है बे?

दारूबाज ने अपने अंदाज में लहराते हुए कहा,-तुम्हारी तनख़्वाह का इंतज़ाम कर रहा हूँ।

आप इसे मजाक में ले सकते हैं।किन्तु मैं गम्भीर हूँ। एक दिन मेरी तरह जनता भी गम्भीरता से चिंतन करेगी।लेकिन हैरानी की बात है कि वर्षों से जनता इसे केवल मजाक में ही ले रही है।हाँ कुछ लोग दुखिया दास बने समाज की चिंता में जागते रहते हैं।ऐसे लोग सदैव दुखी ही रहते हैं।।कांग्रेस के टाइम में भी परेशान रहे।उन्हें लोकतंत्र खतरे में ही दिखता रहा। वे काकस, करप्सन , और काला धन पर चिंतित रहे।जनलोकपाल मांगते रहे।उन्हें किसी भी दल की सरकार में कुछ सकारात्मक नही लगा और अब  भी नही लगता है।मैंने कई कॉमरेडों को देखा है कि वे कॉमरेडों को ही गरियाते रहते हैं।उनका गुस्सा तभी खत्म होता है जब उनकी सुविधाओं का इंतज़ाम हो जाता है।या वे पुलिस की तनख्वाह का इंतज़ाम कर लेते हैं। लेकिन पुलिस ही क्यों हम तो पूरी सरकार को चलाने का इंतज़ाम करते हैं। अब ये जान के ऐठने मत लगना, नही तो सलवारी बाबा बना दिए जाओगे।माल्या की तरह भाग भी नही पाओगे। वैसे बाकी जनता समझदार है।शायद इसीलिए आज तक उसे मालिकों वाली अनुभूति नहीं हो पायी ।

भाई!हमारे पैसे से स्कूल-कॉलेज चलते हैं।टीचर प्रोफेसर वेतन पाते हैं।पर हमारे बच्चों की शिक्षा का इन्तज़ाम हमें खुद करना पड़ता है।हमारे पैसों से अस्पताल चलते हैं । डॉक्टर कंपाउंडर तनख्वाह पाते हैं।पर हमारे स्वास्थ्य से सरकार को कोई मतलब नहीं।आखिर हम किस लिए इन लोगों को वेतन देते हैं प्रधान सेवक जी?

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