कहानी से उभर आये कई किस्से,कहानी में।

रवानी से उभर आये कई किस्से, रवानी में।।


किसी की बात क्या करते

कहीं की बात क्या करते

उसी से कब उबर पाये

नई की बात क्या करते

पुरानी से उभर आये कई किस्से पुरानी में।।


किसे मुंसिफ़ बनाते हम

व्यथा किसको सुनाते हम

मेरे मुख्तार थे जब तुम

तुम्हें कैसे मनाते हम

बयानी से उभर आये कई किस्से,बयानी में।।


कहानी अपनी उल्फ़त की

ज़माने से अदावत की

तेरी तस्वीर सीने में

निशानी है मुहब्बत की

निशानी से उभर आये कई किस्से, निशानी में।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है