या हमें रास्ता दिखा दीजै।

या सलीके का मशविरा दीजै।।

सिर्फ़ इस्मे-शरीफ़ पूछा है

अपनी औक़ात मत बता दीजै।।

आप भी हैं इसी मुहल्ले में

यूँ शरारों को मत हवा दीजै।।

लोग रहते हैं किस मुहब्बत से

इनको आपस में मत लड़ा दीजै।।

या मेरे दर्द की दवा करिये

या मेरे दर्द को बढ़ा दीजै।।

आप गमख़्वार हो नहीं सकते

कुछ न दीजै तो हौसला दीजै।।

हम तो आदम के ख़ानदानी हैं

आप भी अपना सिलसिला दीजै।।

सुरेश साहनी कानपुर

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