सचमुच याद कहाँ आते हैं भूले बिसरे लोग।
याद मगर आते हैं अपने दिल में उतरे लोग।।
लम्बा एक सफ़र है जीवन अगणित स्टेशन हैं
याद किसे है मिले राह में यूँ तो अगणित जन हैं
मनु के पहले कितने कितने बाद में गुज़रे लोग।।
सब करते हैं गलत बयानी या मुँहदेखी बातें
सब जीते हैं अपने ही दिन खोकर अपनी रातें
और चढ़ाकर मिलते हैं चेहरों पर चेहरे लोग।।
तुम तो याद नहीं हो आते याद तुम्हारे धोखे
गढ़ लेते हैं किंतु प्रेम के हम भी चित्र अनोखे
ख़ुद को ही छलते हैं गढ़कर स्वप्न सुनहरे लोग।।
मृत्यु अटल है मृत्यु सत्य है याद किसे है भैया
सिर्फ़ स्वार्थ के रिश्तों में हम सब कुछ भूले भैया
अपने ही किरदारों में हम दुहरे तिहरे लोग।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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