अश्क क्यों हम बहाते फिरें। क्यों नहीं मुस्कुराते फिरें।। लोग समझेंगे मुमकिन नहीं दर्द किसको बताते फिरें।।
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Showing posts from October, 2025
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हम तेरे गाम तक न आ पाते। सूरते-आम तक न आ पाते।। इस नज़ाकत से तो दवा लेकर तुम यहाँ शाम तक न आ पाते।। हम ने आगाज़ कर दिया वरना तुम भी अन्जाम तक न आ पाते।। इश्क़ ने कुछ तो कर दिया काबिल वरना इल्ज़ाम तक न आ पाते।। हम को ईनाम से गुरेज़ रहा तुम भी इक़राम तक न आ पाते।। खाक़ फिरते गली में आवारा जब तिरे बाम तक न आ पाते।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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हमनें की तदबीरें लेकिन। रूठी थी तक़दीरें लेकिन।। बेशक़ हम आईना दिल थे पत्थर थी जागीरें लेकिन।। सोचा कुछ तो बात करेंगीं गूंगी थी तस्वीरें लेकिन।। किस्से तो अब भी क़ायम हैं टूट गईं तामीरें लेकिन।। राँझे अब भी जस के तस हैं बदल गयी हैं हीरें लेकिन।। छत साया देना चाहे है जर्जर हैं शहतीरें लेकिन।। यूँ सुरेश परतंत्र नहीं है मन पर हैं ज़ंजीरें लेकिन।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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आज कोई ग़ज़ल हुई ही नहीं। गो मुआफ़िक फसल हुई ही नहीं।। बात जिससे कि बात बन जाती ऐसी कोई पहल हुई ही नहीं।। फ़िर क़यामत पे हुस्न था राजी आशिक़ी की अज़ल हुई ही नहीं।। जबकि बोला था कल मिलेगा वो उसके वादे की कल हुई ही नहीं।। जो उन्हें नागवार गुजरी है बात वो दरअसल हुई ही नहीं।। जितना आसान सोचते हैं हम जीस्त इतनी सहल हुई ही नहीं।। साहनी कब खलल पसन्द रहा ज़िन्दगी बेखलल हुई ही नहीं।। सुरेश साहनी कानपुर 945154532
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रहमो-नज़रे-करम अजी है क्या। उस मुक़द्दर से ज़िन्दगी है क्या ।। हम न ढोएंगे अब मुक़द्दर को रूठ जाने दो प्रेयसी है क्या।। किसलिये मय को दोष देते हो जानते भी हो बेख़ुदी है क्या।। कुछ तो तदबीर पर भरोसा कर सिर्फ़ तक़दीर की चली है क्या।। क्यों मुक़द्दर से हार मानें हम कोशिशों की यहाँ कमी है क्या।। जागता भी है सो भी जाता है ये मुक़द्दर भी आदमी है क्या!! इतना मालूम है ख़ुदा अक्सर पूछता है कि साहनी है क्या।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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तमाशा आज बढ़ कर देखते हैं। चलो सूली पे चढ़ कर देखते हैं।। न सँवरे आज तक हम नफ़रतों से मुहब्बत से बिगड़ कर देखते हैं।। नहीं दिखते हैं अपने ऐब ख़ुद को हम औरों को तो गड़ कर देखते हैं।। बहुत कमजोरियां हैं अपने अंदर चलो इन से ही लड़ कर देखते हैं।। जमी है धूल मन के आईने पर फ़क़त हम तन रगड़ कर देखते हैं।। हमी दुश्मन हैं अपने साहनी जी कभी ख़ुद से झगड़ कर देखते हैं।।
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सिर्फ मज़हब की बात करते हैं। क्या कभी ढब की बात करते हैं।। जब वो यारब की बात करते है। कौन से रब की बात करते हैं।। ख़ुद ही कहकर जहान को फ़ानी ख़ुद के मनसब की बात करते हैं।। खाक़ मिल्लत को हौसला देंगे दौरे- अर्दब की बात करते हैं।। चश्मे-साक़ी में डूबकर नासेह ख़ूब मशरब की बात करते हैं।। मौत का दिन कहाँ मुअय्यन है आप किस तब की बात करते हैं।। है शबे-वस्ल छोड़ फ़िक़्रे-ज़हाँ सिर्फ़ मतलब की बात करते हैं।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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समतामूलक समाज के निर्माण का विचार ही रावण का दर्शन है।श्वेतकेतु और रावण दोनों ब्राम्हण चिन्तक हैं। एक अव्यवस्थित समाज को विवाह संस्था के माध्यम से सुव्यवस्थित करता है।दूसरा सर्वहारा सत्ता के लिये तंत्र का सहारा लेता है। रावण अशिक्षित नहीं है। उद्भट विद्वान है,महायोद्धा है।किंतु अपने भाई बहनों से प्रेम उसकी कमजोरी है। महान शैव शासक और वेदसम्मत शासन व्यवस्था देने वाले रावण ने कांगड़ा, काठमांडू, काशी और वैद्यनाथधाम में शिवविग्रहों की स्थापना की ,ऐसा जनश्रुतियां बताती हैं।
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जबकि वो देवता न था फिर भी। आदमी तो बुरा न था फिर भी।। जाने कैसे वो दिल में आ पहुंचा उसपे मेरा पता न था फिर भी।। जाने क्या था कि वज़्म था रोशन घर तो अपना जला न था फिर भी।। वो गया तो गया उदासी क्यों जबकि अपना सगा न था फिर भी।। ग़म ने बढ़ के गले लगा ही लिया इस क़दर राब्ता न था फिर भी।। कितने इल्ज़ाम दे गयी दुनिया साहनी बेवफा न था फिर भी।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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ज़रा सी उम्र में इतने बहाने। तुम आगे क्या करोगे राम जाने।। मुहब्बत है तो रखना घर में दाने। वगरना मत निकल पड़ना भुनाने।। अभी मासूम कितने लग रहे हो कहीं लगना न तुम बिजली गिराने।। वहम है तुमसे कोई घर बसेगा उजड़ने तय हैं लेकिन आशियाने।। गये थे इश्क़ का इजहार करने जुबाँ से क्यों लगे हम लड़खड़ाने।। ज़रा सा काम है इक़रार करना लगाओगे सनम कितने ज़माने।। भले हो साहनी अच्छा ग़ज़लगो न लग जाना उसे तुम गुनगुनाने।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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आहो-रंजो-मलाल का हक़ था। कल हमें भी सवाल का हक़ था।। इल्म हर नौनिहाल का हक़ था। सब को ताजा ख़याल का हक़ था।। जो सरेराह कर रहे हो तुम क्या कभी यूँ बवाल का हक़ था।। हुस्न को था उरूज़ का हक़ तो इश्क़ को भी जवाल का हक़ था।। आज वो सब ज़लील हैं उनसे जिनको सच में जलाल का हक़ था।। अब तो फ़रियाद पर भी बन्दिश है कल हमें अर्ज़े-हाल का हक़ था।। आज तुम भीख कह के देते हो कल इसी रोटी दाल का हक़ था।। तुमने रातों की नींद क्यों छीनी ख़्वाब में तो विसाल का हक़ था।। चाय वाला भी बन सके हाकिम क्या ये कुछ कम कमाल का हक़ था।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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जब कभी हम सुनाया करेंगे अमृत काल की कहानियां अपनी अगली की अगली पीढ़ी को और दिखाएंगे हर ऐसी सीढ़ी को जिसके सहारे कुछ लोग रातोरात फर्श से अर्श पर पहुंच जाया करते थे और सबसे बड़ी बात जो हम उन नौनिहालों को बताया करेंगे कि सीढ़ियों के उस दौर में भी हम सांपों को चुना करते थे क्योंकि उन में हमें अपनी जाति या धर्म दिखता था उस काल की चर्चा किया करेंगे कि कुछ तो जादू था जिसके कारण करोड़ों युवा बेरोजगार तो थे परन्तु वे असंतुष्ट नहीं थे वे बदहाल थे, लेकिन कभी भी सरकार से रोजगार नहीं मांगते थे क्योंकि वे जानते थे कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार ईश्वर देता है, सरकार नहीं... सचमुच अमृत काल ही था कितनी भी महंगाई हो लोग उसका कारण सरकार को नहीं मानते थे वे जानते थे कि देश में बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई, बदहाली और अव्यवस्था का एकमात्र कारण विपक्ष होता है और राजा भगवान......... सुरेश साहनी, कानपुर
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अभी चल रही हैं उम्मीदों की साँसें। चलो रोशनी में अंधेरे तलाशें।। अभी हँस रहे हैं मिलेगी जो फुरसत निकालेंगे आहें भरेंगे उसाँसें ।। चलो हम करें एक दूजे को रोशन हमें तुम संवारो तुम्हें हम तराशें।। ये सब जीस्त को काटने के लिये हैं खुशी की कुल्हाड़ी गमों के गड़ासें।। ये किसने कहा है अंधेरा मिटेगा निकलती नहीं हैं कभी तम की फांसें।। यही है वफ़ा का सिला साहनी जी उठाते रहो आरजुओं की लाशें।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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ग़ैर किनको बता रहे थे हम। मात अपनों से खा रहे थे हम।। कुछ न मांगेंगे मुतमईन रहें आप को आजमा रहे थे हम।। गाल कितने गुलों के सुर्ख हुए क्या कोई गुल खिला रहे थे हम।। दौरे-माज़ी में क्यों चले आये जब कहीं और जा रहे थे हम।। हिचकियों में ही नफ़्स टूट गयी क्या उसे याद आ रहे थे हम।। बेवफ़ाई पे उसकी क्या रोना इसलिए मुस्कुरा रहे थे हम।। इब्ने- आदम हुये अगर गिर कर तुम कहो कब ख़ुदा रहे थे हम।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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तू ही ब्रह्मप्रिया मातु तू ही ब्रम्हरुपिणी है तू ही ब्रम्हज्ञान की प्रदायिनी है शारदे। कलावती तू ही मातु तू ही कलाधीश्वरी है तू ही हर कला की प्रसारिणी है शारदे। तू ही वाग्देवी मातु वागप्रिया तू ही मातु 7तू ही वाक्शक्ति की सुधारिणी है शारदे।। आज उपकार कर कण्ठ में विराज मातु कृपा सिंधु है तू उपकारिणी है शारदे।।