राष्ट्रगान को गीत कह गए वे रक़ीब को मीत कह गए फैशन में हल्लेगुल्ले को वे असली संगीत लिख गए।।
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Showing posts from August, 2025
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जाने कब से थी रिश्तों में कड़वाहट ठंडक औ सीलन पास सभी मिल कर बैठे तो मानो इनको धूप मिल गयी।। उपहारों में घड़ियां देकर हमने बस व्यवहार निभाया कब अपनों के साथ बैठकर हमने थोड़ा वक्त बिठाया जब अपनों को समय दिया तो बंद घड़ी की सुई चल गई।। कृत्रिम हँसी रखना चेहरों पर अधरों पर मुस्कान न होना सदा व्यस्त रहना ग़ैरों में पर अपनों का ध्यान न होना साथ मिला जब स्मृतियों को मुरझाई हर कली खिल गयी।। फिर अपनों को अस्पताल में रख देना ही प्यार नहीं है अपनेपन से बढ़कर कोई औषधि या उपचार नहीं है छुओ प्यार से तुम्हें दिखेगा उन्हें जीवनी शक्ति मिल गयी।। सुरेश साहनी,kanpur
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दिल का कारोबार न करने लग जाना। देखो मुझसे प्यार न करने लग जाना।। आज तुम्हारे दिल में हूँ तो चलता है कल सबसे इज़हार न करने लग जाना।। प्यार मुहब्बत गोया इक बीमारी है ख़ुद को तुम बीमार न करने लग जाना।। ज़्यादा डर है खुश होकर नादानी में तुम ख़त को अखबार न करने लग जाना।। मुझे समझना मत मजनूँ तुम भी खुद को लैला का अवतार न करने लग जाना।।
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दूर सफ़र में इतना तन्हा होना भी। कुछ पाना है जाने क्या क्या खोना भी।। फूलों का बिस्तर अपनों को देने मे अक्सर पड़ता है काँटों पर सोना भी।। रोते रोते हँसने की मज़बूरी में पड़ जाता है हँसते हँसते रोना भी।। बेशक़ रिश्तों की बैसाखी मत लेना भारी होता है रिश्तों का ढोना भी।। बोझ दिमागो-दिल पर लेना ठीक नहीं सुख में दुख में पलकें तनिक भिगोना भी।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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दूर सफ़र में इतना तन्हा होना भी। कुछ पाना है जाने क्या क्या खोना भी।। फूलों का बिस्तर अपनों को देने मे अक्सर पड़ता है काँटों पर सोना भी।। रोते रोते हँसने की मज़बूरी में पड़ जाता है हँसते हँसते रोना भी।। बेशक़ रिश्तों की बैसाखी मत लेना भारी होता है रिश्तों का ढोना भी।। बोझ दिमागो-दिल पर लेना ठीक नहीं सुख में दुख में पलकें तनिक भिगोना भी।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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ज़िन्दगी कुछ इस तरह गुज़रेगी ये सोचा न था हादिसे भी इस तरह पेश आयेंगे सोचा न था..... हादिसे दर हादिसे ज़िन्दगी दर ज़िन्दगी एक अनजाने सफ़र पर दौड़ती सी भागती सी और फिर ठहराव कुछ पल मृत्यु के संदेश गोया जीस्त क्या अनुबंध कोई रुढिगत आदेश गोया पर अचानक ख़त्म कर दें ये कभी सोचा न था.... ज़िन्दगी के ज़ेरोबम क्या हैं मरहले गाम जैसे ग़म तुम्हारे हैं ख़ुशी के मुस्तक़िल पैगाम जैसे आज बरहम हैं जो हमसे कल मिलेंगे प्यार लेकर आज के इनकार कल फिर आयेंगे इक़रार लेकर टूट कर रिश्ते पुनः जुड़ जाएंगे सोचा न था...... ज़िन्दगी कुछ इस तरह सुरेश साहनी कानपुर
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हम जिन्हें देवता समझते हैं। देखना है वो क्या समझते हैं।। दरअसल वो है इश्क़ की लज़्ज़त आप जिसको अना समझते हैं।। हुस्न नेमत ख़ुदा की है हम पर आप क्यों कर बला समझते हैं।। शेर सुनकर जो हँस दिये गोया वो हमें मेमना समझते हैं।। आप शायद रदीफ़ भी समझे हम बहर क़ाफ़िया समझते हैं।। साहनी यूँ ग़ज़ल नहीं कहते बात का मर्तबा समझते हैं।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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जाने क्यों मुझे लग रहा है कि मैं सपना देख रहा हूँ। जिस चाँद को अल्ला मिया ने इतना खूबसूरत बनाया था कि हमारे जैसे शायर मसलन ग़ालिब फ़िराक़ वग़ैरा वग़ैरा उसकी शान में जाने क्या क्या लिख गये हैं और लिख रहे है। लेकिन क्या बतायें। बुजुर्गाने-दीन यूँ ही नहीं फरमा गये हैं कि हुस्न को पर्दे में रहना चाहिये। पर क्या किया जाये। आख़िर वो हो ही गया जिसका डर था। चाँद की सारी कमियां मन्ज़रे आम हो गयीं। अजी दाग धब्बे तो छोड़िये कील मुंहासे तक दिखायी दे गये। अभी मैं कुछ सोच पाता कि उसके पहले ही मेरे बेसिक फोन की घण्टी बज पड़ी। में भी आश्चर्य में था कि कोई दस बारह साल हो गये इस फोन की घण्टी बजे हुये।भारत संचार निगम से इस फोन का सम्बंध-विच्छेद बहुत पहले हो चुका है।अब पुराने बिल ,एक दूरभाष निर्देशिका और इस यंत्र के रूप में टेलीफोन विभाग की स्मृतियाँ ही शेष बची हैं। खैर मैंने लेटे लेटे स्पीकर ऑन कर दिया।उधर से जो बाइडेन साहब लाइन पर थे।बेचारे बोल पड़े यार आप लोग हमारे पीछे काहे पड़े हो? मैंने कहा , सर! हम लोग वैसे पुरूष नहीं हैं जो आदमी के पीछे पीछे लुलुवाये फिर...
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उसके सांचे में ढल रहे हैं हम। मोम बन कर पिघल रहे हैं हम।। भीगता है वो गुलबदन लेकिन उसकी गर्मी में जल रहे हैं हम ।। हुस्न मंज़िल से बेखबर मत रह इश्क़ की राह चल रहे हैं हम।। हुस्न आएगा इश्क़ की जानिब अपना लहज़ा बदल रहे हैं हम।।साहनी आज अज़दाद की दुआओं से आसमानों को खल रहे हैं हम।। क्यों हमारी नकल करे है ख़ुदा क्या किसी की नकल रहे है हम।।
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जीवन को उपहार लिखो कवि जितना हो श्रृंगार लिखो कवि किन्तु देश जब संकट में हो तब केवल ललकार लिखों कवि बेशक़ सब कुछ प्यार लिखो कवि जीत हृदय की हार लिखो कवि पर जब बात देश की आये तन मन उस पर वार लिखो कवि प्रेयसि से मनुहार लिखो कवि मधुपुरित अभिसार लिखो कवि पर जब सीमा पर संकट हो बम बम का उच्चार लिखो कवि तोड़ कलम तलवार गहो कवि प्रलयंकर अवतार गहो कवि मधुर मिलन के गीत नहीं तब शब्दों में हुँकार लिखो कवि।। सुरेश साहनी, कानपुर
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ये नंग वो धड़ंग हैं मालूम ही न था। दुनिया के इतने रंग हैं मालूम ही न था। है कोफ्त उससे मांग के मायूस जो हुए मौला के हाथ तंग है मालूम ही न था। दौलतकदो से यूं न मुतास्सिर हुए कभी फितरत से हम मलंग हैं मालूम ही न था।। है डोर उस के हाथ सुना था बहुत मगर जीवन भी इक पतंग है मालूम ही न था।। ये छल फरेबो गम ये ज़हां भर की जहमतें सब आशिकी के अंग हैं मालूम ही न था।। सुरेश साहनी कानपुर
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लग रहा है इस शहर में आज था कुछ हाँ अभी दो चार गज़लें कुछ परीशां सी दिखी हैं एक ने तो एक होटल से निकल कर उड़ रही काली घटाओं में उलझती कुछ निगाहों के सवालों को झटक कर बोझ सा अपने सरों पर बाँध कर कुछ पर्स में रखने के जैसा रख लिया है छन्द जैसा रोब रखते चंद मुक्तक कुछ पुरानी शक्ल के दोहे निकलकर जो बिगड़कर सोरठा से हो चुके हैं नए गीतों को कहन समझा रहे हैं उस ज़माने की कहानी जिनको शायद आज अगणित झुर्रियों ने ढक लिया है और अब उन हुस्न के ध्वंसावशेषों की- कथाओं को नए परिवेश में फिर से सुनाकर सोचते हैं ग़ज़ल उन पर रीझकर के ढूंढ़कर फिर सौप देगी कल के उजले और काले कारनामे जो कि अब अस्तित्व अपना खो चुके हैं कल शहर फिर कुछ करेगा.... सुरेश साहनी ,कानपुर
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हम न होंगे तो सब कहेंगे क्या। यूँ भी कहने को सब रहेंगे क्या।। हम तो धारों से लड़ने आये हैं आप धारा में ही बहेंगे क्या।। ठीक है ग़म में रह लिये दो दिन दर्द ये उम्र भर सहेंगे क्या।। यूँ भी जिसको हमारी फिक्र नहीं उसकी फुरकत में हम दहेंगे क्या।। इश्क़ में कब भला उरूज मिला इश्क़ में साहनी लहेंगे क्या।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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हम न होंगे तो सब कहेंगे क्या। यूँ भी कहने को सब रहेंगे क्या।। हम तो धारों से लड़ने आये हैं आप धारा में ही बहेंगे क्या।। ठीक है ग़म में रह लिये दो दिन दर्द ये उम्र भर सहेंगे क्या।। यूँ भी जिसको हमारी फिक्र नहीं उसकी फुरकत में हम दहेंगे क्या।। इश्क़ में कब भला उरूज मिला इश्क़ में साहनी लहेंगे क्या।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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घर आँगन दालान बिक गया पुरखों का सम्मान बिक गया। पण्डित मुल्ला बिके सभी पर शोर मचा इंसान बिक गया।।...... उस गरीब की जान बिक गयी अच्छी भली दुकान बिक गयी नाम बिक गया शान बिक गयी क्या अब कहें जुबान बिक गयी घर परिवार बचा रह जाये इसी लिए ईमान बिक गया।।1 शिक्षा अब व्यापार बन गयी राजनीति रुजगार बन गयी लाठी गोली बंदूकों से मिल जुल कर सरकार बन गयी गण गिरवी है तंत्र बिका तो बाबा तेरा विधान बिक गया।।2 सैनिक मरा किसान मर गया। बूढ़ा और जवान मर गया।। राजनीति रह गयी सलामत बेशक़ इक इंसान मर गया।। फिर गरीब की हस्ती क्या है वहाँ जहाँ धनवान बिक गया।।3.......... नाम बचा तो शेष बिक गया सरकारी आदेश बिक गया विस्मित जनता सोच रही है क्यों इनका गणवेश बिक गया ध्वज को कौन सम्हालेगा अब जबसे बना प्रधान बिक गया।।4 सुरेश साहनी , कानपुर
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हम न होंगे तो सब कहेंगे क्या। यूँ भी कहने को सब रहेंगे क्या।। हम तो धारों से लड़ने आये हैं आप धारा में ही बहेंगे क्या।। ठीक है ग़म में रह लिये दो दिन दर्द ये उम्र भर सहेंगे क्या।। यूँ भी जिसको हमारी फिक्र नहीं उसकी फुरकत में हम दहेंगे क्या।। इश्क़ में कब भला उरूज मिला इश्क़ में साहनी लहँगे क्या।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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तुम तो मुझसे ख़फ़ा रहोगे ही। मेरे अपने हो क्या रहोगे ही।। कोई सूरत नहीं सिवा जबकि फिर भी मेरे सिवा रहोगे ही।। मुझ को फिर भी यक़ीन है इतना तुम तो अहले वफ़ा रहोगे ही।। एक दूजे की जान हैं जब हम क्यों किसी और का रहोगे ही।। ठीक है मेरी जान ले लेना तुम तो शायद सदा रहोगे ही।। साहनी क्यों न ग़ैर की सोचे तुम अगर बेवफा रहोगे ही।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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ये उलटबांसिया नहीं कोई। साफ़ कहना भी है ग़ज़लगोई।। ज़िन्दगी उम्र भर नहीं जागी मौत भी उम्र भर कहाँ सोई।। किसके शानों पे बोझ रख देता लाश अपनी थी उम्र भर ढोई।। इश्क़ का दाग है कहाँ छुटता तन चदरिया रगड़ रगड़ धोई।। साहनी कब हँसा था याद नहीं जीस्त लेकिन कभी नहीं रोई।। उलटबांसी/ व्यंजना की एक पद्धति, घुमा फिरा कर कहना ग़ज़लगोई/ग़ज़ल कहना शानों/कंधों जीस्त/जीवन सुरेश साहनी कानपुर
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यूँ न नफ़रत से बात कर उससे। इक मुहब्बत से बात कर उससे।। तरबियत बातचीत में झलके इस शराफत से बात कर उससे।। शादमानी मिज़ाज में आये इस तबियत से बात कर उससे।। उस रईसी पे बदगुमां मत हो दिल की दौलत से बात कर उससे।। बेवफाई तो कल करेगा ही आज उल्फ़त से बात कर उससे।। बात करनी है तो तसल्ली रख यूँ न उज़लत से बात कर उससे।। साहनी इक फकीर है बेशक़ उसकी अज़मत से बात कर उससे।। तरबियत/ संस्कार बदगुमां/ भ्रमित उज़लत/जल्दबाजी अज़मत/श्रेष्ठता,महानता सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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पास अपने प्यार का ठेका नहीं। दिल है ये बाज़ार का ठेका नहीं।। मैं लिखूं और नाम आये ग़ैर का शायरी गुलज़ार का ठेका नहीं।। इक दफा खुलकर इसे जी लीजिये ज़िन्दगी हर बार का ठेका नहीं।। दिल पे उनके सिर्फ मेरा नाम है आशिक़ी अगियार का ठेका नहीं।। सब मिटायें तब तो होंगे पाप कम ये किसी अवतार का ठेका नहीं।। कर दे खुशियों के हवाले ज़िन्दगी तू दिले-बेज़ार का ठेका नहीं।। साहनी का दिल अनारो ले भी ले सैकड़ो बीमार का ठेका नहीं।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132