यह बीमारी मुझको ही है

तुमको रोग न ये छू पाया


मैं तन का भोगी होता तो

मुझ को रोग न ये छू पाता

कलियों का रस पीता क्यों कर

एक पुष्प पर प्राण लुटाता


अर्थ प्रेम है अर्थ प्रेम का

इतना मुझको समझ न आया......


जन्म जन्म के बन्धन वाले

प्रेम न अब कोई करता है

अब का प्रेम बुलबुला जैसा

बनता है फूटा करता है


आज व्यर्थ का विषय मनन है 

किसने कितना साथ निभाया .......


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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