कल मैं ही मुझको आईने में अज़नबी लगा।
क्या अपने साथ आप को ऐसा कभी लगा।।
हर रोज़ दे रही है बढ़ी उम्र दस्तकें
चेहरा नहीं ये वक्त की खाता बही लगा।।
लेकर तुम्हारा इश्क़ गया मौत के करीब
फिर भी तुम्हारा इश्क़ मुझे ज़िन्दगी लगा।।
मेरे लिये तो तुम सदा अनमोल ही रहे
क्या मैं कहीं से तुमको कभी कीमती लगा।।
तुम देवता कहो मेरी चाहत न थी कभी
इतना बहुत है मैं भी तुम्हें आदमी लगा।।
अपना तो तुमने मुझको बताया नहीं कभी
कैसे कहूँ कि मैं भी तुम्हारा कोई लगा।।
कल तुमने किसको देख के चेहरा घुमा लिया
तुम जानते थे या कि तुम्हें साहनी लगा।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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