लोग पढ़ते हैं या नहीं पढ़ते।
हम तो इस फेर में नहीं पड़ते।।
हर कहीं इत्तेफाक रखते तो
हम किसी आंख में नही गड़ते।।
मौत से निभ गयी इसी कारण
ज़िन्दगी से कहाँ तलक लड़ते।।
किस को तुलसी कबीर होना था
हम भी बढ़ते तो हाथ भर बढ़ते।।
और मशहूरियत से क्या मिलता
ख्वामख्वाह हर निगाह में चढ़ते।।
इश्क़ और उस नवाबजादी से
उम्र भर ग़म की जेल में सड़ते।।
साहनी से ग़ज़ल अजी तौबा
फिर ज़ईफ़ी में हुस्न क्या तड़ते।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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