संग उसके भी इक सफ़र कर ले।
ज़िन्दगी मौज मे गुज़र कर लें।।
मेरे क़ातिल को क्यों अज़ीयत हो
क्यों न उसकी गली में घर कर लें।।
जबकि मन्ज़िल भी एक है यारब
एक ही अपनी रहगुज़र कर लें।।
मौत से किसलिये ख़फ़ा हों हम
किसलिये ज़िन्दगी ज़हर कर लें।।
छोड़ जाने पे ग़म नहीं होगा
तेरे ग़म को ही मोतबर कर लें।।
क्या कहा आपसे लगा लें दिल
और इक वज़्हे-दर्दे-सर कर लें।।
साहनी लामकान की ख़ातिर
किसलिये ख़ुद को दर-ब-दर कर लें।।
सुरेश साहनी , कानपुर
9451545132
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