आप ख़ुशबू हैं फ़िज़ा में गोया।
हम फ़क़त धूल हवा में गोया।।
कितने अरमान धुआँ हैं जिससे
कोई बिजली है अदा में गोया।।
हर कोई नूर हुआ चाहे है
जीस्त है उसकी शुआ में गोया।।
आज डरती हैं बलायें हमसे
कोई रखता है दुआ में गोया।।
वो भी उल्फ़त का है मारा शायद
दर्द है उसकी सदा में गोया।।
सुरेश साहनी कानपुर
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