मन तुम तक क्या ले गयी अमलतास की गंध।

झट विषाद ने कर लिया मौसम से अनुबंध।।


लुभा न पाये रूप से दहके हुये पलाश।

मन जाकर ठहरा रहा गुलमोहर के पास।।

दोहे

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