जब कभी ज़िन्दगी से बात हुयी।

यूँ लगा अजनबी से बात हुयी।।


इतनी राजी खुशी से बात हुयी।

गोया मेरी मुझी से बात हुयी।।


जो मुझे आइने में दिखता है

कल उसी आदमी से बात हुयी।।


जिस तसल्ली से बात करनी थी

उतनी आसूदगी से बात हुयी।। 


राज मेरे अयाँ हुये मुझपर

इतनी बेपर्दगी से बात हुयी।।


जीस्त का रूठना अजीब लगा

कब भला बेरुखी से बात हुयी।।


हर तरह पारसा लगा मुझको

जब मेरी साहनी से बात हुयी।।


आसूदगी/आराम,इत्मिनान

अयाँ/प्रकट

बेपर्दगी/ खुलेपन

जीस्त/ जीवन

पारसा/पवित्र, धर्मात्मा


सुरेश साहनी कानपुर

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