जां से जब तक कि हम न जायेंगे।
ज़िंदगानी के ग़म न जायेंगे।।
कुछ तुम्हारे वहम न जायेंगे।
कुछ हमारे भरम न जायेंगे।।
चार कन्धे मिलें तो रुख़्सत हों
यूँ तो हम दो क़दम न जायेंगे।।
बेख़ुदी मयकदे का हासिल है
अब तो दैरोहरम न जायेंगे।।
अहले दोज़ख़ हैं सब ज़हां लेकिन
यार जन्नत भी कम न जायेंगे।।
हो के ख़ामोश सह रहे हैं सब
यूँ तो जुल्मोसितम न जायेंगे।।
तुम भी तन्हा ज़हां में आये थे
हम भी लेके अलम न जायेंगे।।
क्या करेंगे अदीब महफ़िल में
जब हमारे सनम न जायेंगे।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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