धर्म का ऋण चुका गये तुलसी।
राम कीरत जो गा गये तुलसी।।
राम में ही रमा गये तुलसी
प्रभु हृदय में समा गये तुलसी।।
क्या कोई दूसरा कमाएगा
नाम जितना कमा गये तुलसी।।
जबकि सिर पर न कोई साया था
फिर भी दुनिया में छा गये तुलसी।।
डूब ही जाती धर्म की नैया
बन के केवट बचा गये तुलसी।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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