जिस्म है या कोई मकां तन्हा।
रह लिये फिर भी हम यहाँ तन्हा।।
आसमानों में कोई रहता है
लापता और लामकां तन्हा।।
चाँद तारें हैं कहकशांयें भी
अब न कहना है आसमां तन्हा।।
सोचना तीरगी के आलम को
जब हुआ कोई जौ-फिशां तन्हा।।
हुस्न जब भी गया है महलों में
सिर्फ़ होता रहा ज़ियाँ तन्हा।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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