गहरी बात कही है शायद!
उनसे कुछ मौजू -ए-पहल मिल जाय।
गो कि दुश्वारियों के हल मिल जाएँ।। तुम मुझे इस तरह से मिल जाओ जैसे शायर को इक गजल मिल जाय।। मेरे हरजाई मैं भी चाहूँगा तुझको एकदिन मेरा बदल मिल जाय।। |
गहरी बात कही है शायद!
तेरी बात सही है शायद।। क्या होती है दुनियादारी मुझमे समझ नही है शायद।। तुम मुझको भी समझ न पाये मेरी कमी रही है शायद।। जो मुझसे ही दूर हो गया मुझमे आज वही है शायद।। उसकी यादें उसकी बातें करते नींद बही है शायद।। |
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