मुझसे रिश्ते भी अपने निभाता रहा।
दुश्मने-जां भी मुझको बताता रहा।
क्या कहें हम कि जिसका यकीं था मुझे
किसलिये उम्रभर आजमाता रहा।।
उम्रभर ज़िंदगी मुझसे रूठी रही
ज़िन्दगी भर उसे मैं मनाता रहा।।
कैफ़ हासिल है इतना मुझे इश्क़ में
उम्र भर एक ग़म गुदगुदाता रहा।।
ये भी रोने का अंदाज़ है इश्क़ में
साहनी हर घड़ी मुस्कुराता रहा।।
सुरेश साहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment