कुछ क्या खाक़ कमा पाये हम।
जो था मिला लुटा आये हम।।
इस दुनिया की चकाचौंध में
आंखें लेकर अन्हराये हम।।
सागर में ज्यूँ बूंद सरीखे
अहंकार में उफनाये हम।।
भूल गये थे जग मरघट है
तन फ़ानी पे इतराये हम।।
दुनिया मुट्ठी में कर ली थी
किन्तु चले कर फैलाये हम।।
अन्तर्मन की मैल न छूटी
कितना ख़ुद को नहवाये हम।।
जब बाबुल घर ही जाना था
फिर पीहर क्यों कर धाये हम।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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