अगर वो था नहीं तहरीर ही में।
तो बेहतर था न आता ज़िन्दगी में।।
किनारा बन के मुझसे दूर रहता
मुहब्बत को बहा देता नदी में।।
न उस से दूर रहते कैफ़ सारे
न ग़म हँसते हमारी हर खुशी में।।
खुशी रहती है चारो ओर अपने
नहीं दिखती है मन की तीरगी में।।
सदाक़त से उन्हें मतलब कहाँ है
कमी जो देखते हैं साहनी में।।
तहरीर/भाग्य लेख
कैफ़/आनंद
तीरगी/अँधेरा
सदाक़त/सच्चाई,खरापन, मन की पवित्रता
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
Comments
Post a Comment