ऐरे गैरे नत्थू खैरे  मंच पे नाम कमाय रहे है


काल्हि के जउन फिसड्डी रहे सब हमहुँ से आगे जाय रहे हैं कविता  ना रही  जिनके ढिग में उई खाय कमाय अघाय रहे हैं


माँ मेरे लिए कृपा वीणा के स्वर  मद्धिम क्यों पड़ जाय रहे हैं।।


हास्य व्यंग्य

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