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Showing posts from August, 2024
 हर घड़ी पाँव में जंजीर  लिए फिरते हैं। हम जो दिल में तेरी तस्वीर लिए फिरते हैं।।
 मामला ज़ेर-ए- बहस है क्या। हाले दिल अब भी जस का तस है क्या।। ज़िन्दगी इक सवाल तुझसे भी जिस्म ही जान का कफ़स है क्या।। इश्क़ करके भी क्या हुआ हासिल इसकी मन्ज़िल फ़क़त हवस है क्या।।
 देखने में भली न थी लेकिन। उसमें कोई  कमी न थी लेकिन।। वो परीजाद थी मेरी ख़ातिर जानता हूँ परी न थी लेकिन।। जां हथेली पे ले के जाते थे हुस्न की वो गली न थी लेकिन।। उस के शिक़वे बुरे तो लगते थे उस की मंशा बुरी न थी लेकिन।। मैं समझता था वो समझती है बात मेरी सही न थी लेकिन।। जान तो मेरी उसमें बसती थी हाथ में वो लिखी न थी लेकिन।। साहनी वो हसीन ख़्वाब सही उसकी ताबीर ही न थी लेकिन।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 चेहरा मेरा ज़र्द बहुत है। या दर्पण पर गर्द बहुत है।। मंज़िल तक कितने पहुँचेंगे एक कोई राह-नवर्द ब
 मुझसे मेरे दिल की दूरी ठीक नहीं। यूँ रिश्तों में खानापूरी ठीक नहीं।। मजबूरी में रिश्ते ढोना ठीक मगर रिश्तों में कोई मजबूरी ठीक नहीं।।
 फिर महल के लिये झोपड़ी हँस पड़ी। धूप ढल सी गयी चांदनी हँस पड़ी।। ज़ुल्म ने देखा हसरत से बेवा का तन काम के दास पर बेबसी हँस पड़ी।। उम्र भर जो डराती फिरे थी उसी मौत को देखकर ज़िन्दगी हँस पड़ी।। मौत के डर से  भागी इधर से उधर आज करते हुए खुदकुशी  हँस पड़ी।। रोशनी  अपने होने के भ्रम में रही साथ दे कर वहीं तीरगी  हँस पड़ी।। जन्म से मृत्यु तक जीस्त भटकी  जिसे है सफ़र  सुन के आवारगी हँस पड़ी।। सुरेशसाहनी कानपुर
 भले तुमसे मिठाई हम न लेंगे। मगर कम एक पाई हम न लेंगे।। समझ लेना तुम्हारे साथ हैं पर विधायक से बुराई हम न लेंगे।। मेरे पी ए को दे देना जुटा कर रुपैय्या तुमसे भाई हम न लेंगे।। अगर मेहनत का है तो घूस दे दो कोई काली कमाई हम न लेंगे।। ये सुख सुविधा ये गाड़ी और बंगला सभी के काम आयी हम न लेंगे।। #हज़ल #व्यंग सुरेश साहनी कानपुर
 जब अपने ही अहम में, देवें दिल की पीर। उन्हें दिखाओ खींच कर उनसे बड़ी लकीर।। साहनी दोहा
 और कितने यहाँ ग़ज़लगो हैं। एक है चार हैं कि दूगो हैं।। और हर एक की अलग आढ़त अपने अपने सभी के लोगो हैं।। हर कोई है अना में चूर यहाँ हद से ज़्यादा सभी के ईगो हैं।। हैं तो शायर मगर फ़रेब भरे उनमें कितने यहां दरोग़-गो हैं।। और तनक़ीद क्यों करें उनपे साहनी कौन से नग़ज़-गो हैं।। ग़ज़लगो/कवि, ग़ज़ल कहने वाला दूगो/दो लोग अना/घमंड ईगो/अहंकार तनक़ीद/टिप्पणी लोगो/प्रतीक चिन्ह दरोग़-गो/झूठा नग़ज़-गो/अच्छा लिखने वाला साहनी सुरेश 9451434132
 मन तुम तक क्या ले गयी अमलतास की गंध। झट विषाद ने कर लिया मौसम से अनुबंध।। लुभा न पाये रूप से दहके हुये पलाश। मन जाकर ठहरा रहा गुलमोहर के पास।। दोहे
 ज़िन्दगी क्यों उबल रही थी बता। कौन सी बात खल रही थी बता।। मुझको तन्हाइयों ने क्यों घेरा जबकि तू साथ चल रही थी बता।। मुझको साहिल पे छोड़ कर तन्हा क्यों लहर बन मचल रही थी बता।। मौत कैसे निकल गयी आगे तू तो आगे निकल  रही  थी बता।। ख्वाहिशें कौन सी हुयी पूरी हसरतें कितनी पल रही थी बता।। मेरे साये ने साथ क्यों छोड़ा शाम क्या सच में ढल रही थी बता।। साहनी मयकदे में क्यों लौटा चाल किसकी सम्हल रही थी बता ।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 जाने क्यों मुझे लग रहा है कि मैं सपना देख रहा हूँ। जिस चाँद को अल्ला मिया ने इतना खूबसूरत बनाया था कि हमारे जैसे शायर उसकी शान में जाने क्या क्या लिख गये हैं और लिख रहे है। लेकिन क्या बतायें।  बुजुर्गाने-दीन यूँ ही नहीं फरमा गये हैं कि हुस्न को पर्दे में रहना चाहिये। पर क्या किया जाये। आख़िर वो हो ही गया जिसका डर था। चाँद की सारी कमियां मन्ज़रे आम हो गयीं। अजी दाग धब्बे तो छोड़िये कील मुंहासे तक दिखायी दे गये।   अभी मैं कुछ सोच पाता कि उसके पहले ही मेरे बेसिक फोन की घण्टी बज पड़ी। में भी आश्चर्य में था कि कोई दस बारह साल हो गये इस फोन की घण्टी बजे हुये।भारत संचार निगम से इस फोन का सम्बंध-विच्छेद  बहुत पहले हो चुका है।अब पुराने बिल ,एक दूरभाष निर्देशिका और इस यंत्र के रूप में टेलीफोन विभाग की स्मृतियाँ ही शेष बची हैं।     खैर मैंने लेटे लेटे  स्पीकर ऑन कर दिया।उधर से जो बाइडेन साहब लाइन पर थे।बेचारे बोल पड़े यार आप लोग हमारे पीछे काहे पड़े हो?  मैंने कहा , सर! हम लोग वैसे पुरूष नहीं हैं जो आदमी के पीछे पीछे लुलुवाये फिरें। और जब दुनियां भर की विश्व...
 नाहक़ उपमायें देता था नाहक़ मैं तुलना करता था मेरा चाँद अधिक सुन्दर है पर तुमको बोला करता था इतने कील मुहांसे तुममें इतना रूखा सूखा चेहरा नाहक़ कोमल कोमल शब्दों में तुमको तोला करता था तुमसे ज़्यादा किसे पता है नवग्रह बन्दी थे रावण के मंगल सूर्य और शनि मानो सेवक थे दसशीश चरण के तुम्हें पता है भारतवंशी गणना में कितने आगे थे काल समय घोषित करते हैं पहले से प्रत्येक ग्रहण के लुकाछिपी की या छलने की सदा रही है प्रवृति तुम्हारी पर खगोल सब भेद तुम्हारे पहले भी खोला करता था..... सुरेश साहनी, कानपुर
 दम घुटता है सोने चाँदी की दीवारों में। चलकर बैठें अपने जैसे ग़म के मारों में।। ज़ेरे -ज़मीं तो आते जाते दुनिया दिखती है कौन सदा रह पाया है ऊंची मीनारों में।। काले काले अक्षर पन्ने घेरे रहते हैं क्या काला सच भी छपता है अब अखबारों में।। सामाजिकता छिन्न हुई है अंधी दौड़ों से बच्चे घर कम ही आते हैं अब त्योहारों में।। अब महंगाई सहना ही जनता की किस्मत है मूल्य बहुत माने रखते थे तब  किरदारों में।। चंद्रयान ने तेरी सच्चाई दिखला ही दी  तू नाहक़ नखरे लेता था रहकर तारों में।। मेरा चंदा तब भी तुमसे ज्यादा सुन्दर है चाँद तुम्हारी गिनती होगी लाख हज़ारों में।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 धर्म का ऋण चुका गये तुलसी। राम कीरत जो गा गये तुलसी।। राम में ही रमा गये तुलसी प्रभु हृदय में समा गये तुलसी।। क्या कोई दूसरा कमाएगा नाम जितना कमा गये तुलसी।। जबकि सिर पर न कोई साया था फिर भी दुनिया में छा गये तुलसी।। डूब ही जाती धर्म की नैया बन के केवट बचा गये तुलसी।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 जैसे हर इंसान अलग है। दुनिया और ज़हान अलग है।। इसी तरह से इस दुनिया हर इक का भगवान अलग है।। और ख़ुदा का भी डर है तो कैसे वो शैतान अलग है।।
 फ़क़त झूठे दिलासे दे रहा है। न् जाने कब से झांसे दे रहा है।। वो वादों के उजासों में भुलाकर दुआओं में कुहासे दे रहा है।। ज़रा सा भी किसी ने चूं चपड़ की उसे फेरा में फांसे दे रहा है।। तभी उम्मीद की हर देवकी को समय जेलों में ठासे  दे रहा है।।
 गर्म सांसें मेरी शीतल कर दो। मैं हूँ सहरा मुझे जलथल कर दो।। कतरा कतरा मैं बरस जाऊंगी गोया दरिया हूँ मैं बादल कर दो।। मेरी सांसों में महक कर मेरे बूटा-ए-जिस्म को सन्दल कर दो।। यूँ गुज़र जाओ जुनूँ की हद से इतना चाहो मुझे पागल कर दो।। मुझमे जन्मों का अधूरापन है प्यार से अपनी मुकम्मल कर दो।।
 शाम हुई चलने देते हैं सूरज  को ढलने देते हैं ऐसा करते हैं आंखों में  कुछ सपने पलने देते हैं।। क्या सूरज ही बनजारा हैं हम भी तो बंजारे ठहरे आज उठे जो इस दर से हम कल जाने किस द्वारे ठहरे संध्या को सुरमई नयन में कुछ काजल मलने देते हैं..... यह तो तय है रात बिता कर कल सूरज फिर से निकलेगा कब तक अँधियारा जागेगा कब तक सूरज आँख मलेगा चलो अमा में भी आशा का एक दिया जलने देते हैं....... सूर्य विवश है नियत समय पर सुबह उगा है शाम ढला है किन्तु नियति ने साथ समय के मिलकर हमको खूब छला है और नियति को कदम कदम पर हम ही तो छलने देते हैं....... सुरेश साहनी , कानपुर 9451545132
 कसम क्या आपकी हम जान खा लें। रुको बस एक बीड़ा पान खा लें।। कहो तो आपकी पहचान लें लें। कहो तो आपका उनवान खा लें।। बरस सौ बाद यह मौका मिला है बचा जितना है हिंदुस्तान खा लें।। सिखा कर धर्म नफ़रत का सभी को समूचे मुल्क़ का ईमान खा लें।। हमारी भूख सुरसा से बड़ी है हमें क्या क्या न चहिए क्या न खा लें।। सियासी हैं न खायें प्याज लहसुन भले हम वक़्त पे इंसान खा लें।। व्यवस्था आजकल सुनती कहाँ है बताओ और किसके कान खा लें।। सुरेश साहनी ,कानपुर 9451545132
 जां से जब तक कि हम न जायेंगे। ज़िंदगानी के ग़म न जायेंगे।। कुछ तुम्हारे वहम न जायेंगे। कुछ हमारे भरम न जायेंगे।। चार कन्धे मिलें तो रुख़्सत हों यूँ तो हम दो क़दम न जायेंगे।। बेख़ुदी मयकदे का हासिल है अब तो दैरोहरम न जायेंगे।। अहले दोज़ख़ हैं सब ज़हां लेकिन यार जन्नत भी कम न जायेंगे।। हो के ख़ामोश सह रहे हैं सब यूँ तो जुल्मोसितम न जायेंगे।। तुम भी तन्हा ज़हां में आये थे हम भी लेके अलम न जायेंगे।। क्या करेंगे अदीब महफ़िल में जब हमारे सनम न जायेंगे।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 बनाकर इक बहाना छोड़ देना। फ़कीरों का घराना छोड़ देना।। जहां तुमको लगे तन्हाइयाँ है तुम उस महफ़िल में जाना छोड़ देना।। तराना छेड़ना जब आशिक़ी का मुहब्बत आजमाना छोड़ देना।। गुणनफल में विभाजित ही हुए हो न जुड़ना तो घटाना  छोड़ देना।। दिया है तो लिया भी है मेरा दिल ये  बातें  दोहराना  छोड़  देना।। तुम्हें किसने कहा है याद करना फ़क़त तुम याद आना छोड़ देना।। सुरेश साहनी कानपुर
 जिस्म है या कोई मकां तन्हा। रह लिये फिर भी हम यहाँ तन्हा।। आसमानों में कोई रहता है लापता और लामकां तन्हा।। चाँद तारें हैं कहकशांयें भी अब न कहना है आसमां तन्हा।। सोचना तीरगी के आलम को जब हुआ कोई जौ-फिशां तन्हा।। हुस्न जब भी  गया है महलों में सिर्फ़ होता रहा ज़ियाँ तन्हा।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 कौन कौन सी कहें कहानी कौन कौन सी बात बतायें। झूठ बखाने सिर्फ़ जीत की  या फिर सच की मात बतायें।। कब रह पाये सात जन्म तक साथ निभाने वाले बंधन  कहाँ प्रेम अरु कहाँ सहजता हर रिश्ता जैसे अनुबन्धन  क्या है जन्म जन्म का नाता  किसको फेरे सात बतायें।। कैसे रिश्ते क्या मर्यादा टूट चुका है तानाबाना आज स्वार्थवश पुत्र पिता को कहने लगता है बेगाना वृद्धाश्रम में किसे वेदना  बूढ़े पितु और मात बतायें।। कहाँ बचे अब गांवों में भी घर ऐसी आबादी वाले परनाना परनानी वाले परदादा परदादी वाले क्या अब गाकर अपनी पीड़ा  बूढ़े  पीड़ित गात बतायें।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 आप ख़ुशबू हैं फ़िज़ा में गोया। हम फ़क़त धूल हवा में गोया।। कितने अरमान धुआँ हैं जिससे कोई बिजली है अदा में गोया।। हर कोई नूर हुआ चाहे है जीस्त है उसकी शुआ में गोया।। आज डरती हैं बलायें हमसे कोई रखता है दुआ में गोया।। वो भी उल्फ़त का है मारा शायद दर्द है उसकी सदा में गोया।। सुरेश साहनी कानपुर
 आप कितने बड़े सितमगर हैं। अहले-उल्फ़त हैं हम भी दिलवर हैं।। आप भी ख़ाली हाथ जाएंगे आप बेशक़ कोई सिकन्दर हैं।। आप का हुस्न है गुहर कोई इश्क़ में हम भी इक जवाहर हैं।। लाख दुनिया ज़हां के मालिक हो दिल की दुनिया में सब बराबर हैं।। कर दिया आपको ग़ज़ल जिसने साहनी जी वही  सुख़नवर हैं।। सुरेश साहनी, अदीब,  कानपुर 9451545132
 कहाँ तक करें उनके आने की बातें। वो आते ही करते हैं जाने की बातें।। मुझे तो यक़ीं है वफाओं पे अपनी वो करते रहें आज़माने की बातें।। घड़ी दो घड़ी का ठिकाना नहीं है करें हश्र तक क्यों निभाने की बातें।। तुम्हें कुछ हैं शिक़वे गिले मुझसे कह लो मैं क्यों कर सुनूंगा ज़माने की बातें।। अभी सुन रहे थे कि परदा उठेगा अभी से ये पर्दा गिराने की बातें।। वो क्या अपनी ज़ुल्फ़ों का साया करेंगे जो करते हैं दामन छुड़ाने की बातें।। ज़हां भर को जब मुतमइन कर रहे हैं तो क्यों साहनी को सताने की बातें।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 जब कभी ज़िन्दगी से बात हुयी। यूँ लगा अजनबी से बात हुयी।। इतनी राजी खुशी से बात हुयी। गोया मेरी मुझी से बात हुयी।। जो मुझे आइने में दिखता है कल उसी आदमी से बात हुयी।। जिस तसल्ली से बात करनी थी उतनी आसूदगी से बात हुयी।।  राज मेरे अयाँ हुये मुझपर इतनी बेपर्दगी से बात हुयी।। जीस्त का रूठना अजीब लगा कब भला बेरुखी से बात हुयी।। हर तरह पारसा लगा मुझको जब मेरी साहनी से बात हुयी।। आसूदगी/आराम,इत्मिनान अयाँ/प्रकट बेपर्दगी/ खुलेपन जीस्त/ जीवन पारसा/पवित्र, धर्मात्मा सुरेश साहनी कानपुर