ग्राम देव के श्रम सीकर से खेतों की हरियाली का। जाग जाग कर शीत काल में खेतों की रखवाली का।। मान न रक्खा सरकारों ने मर मर जीने वालों का सबने लूटा सबने छीना अन्न उसी की थाली का।।
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Showing posts from September, 2024
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मुझसे रिश्ते भी अपने निभाता रहा। दुश्मने-जां भी मुझको बताता रहा। क्या कहें हम कि जिसका यकीं था मुझे किसलिये उम्रभर आजमाता रहा।। उम्रभर ज़िंदगी मुझसे रूठी रही ज़िन्दगी भर उसे मैं मनाता रहा।। कैफ़ हासिल है इतना मुझे इश्क़ में उम्र भर एक ग़म गुदगुदाता रहा।। ये भी रोने का अंदाज़ है इश्क़ में साहनी हर घड़ी मुस्कुराता रहा।। सुरेश साहनी, कानपुर
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कछु अड्ड मिलें ,कछु बड्ड मिलें जँह हमरे जैस उजड्ड मिलें समझो कवियों का जमघट है। बातन मा योग बिछोह दिखै हरकत हो अइस गिरोह दिखै समझो कवियों का जमघट है।। जँह रात में भैरव गान मिलै जँह तालें तूरत तान मिलै समझो कवियों का जमघट है।। जँह सारे उटपटांग मिलै जँह भाषा टूटी टांग मिलै समझो कवियों का जमघट है।। #सुरेशसाहनी
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क्षीण हैं पौरुष भुजायें मौन हैं द्रौपदीयों पर सभायें मौन हैं अग्निपुत्री नग्न होती जा रही आस्थाएँ भग्न होती जा रही कौन ढोये धर्म जब पीढ़ी नयी वासना में मग्न होती जा रही आज हतप्रभ हैं दिशायें मौन हैं सत्य विचलित वेदनायें मौन हैं....... सत्य हम संधान करते रह गये योग साधन ध्यान करते रह गये एकलव्यों की यही गुरु भक्ति है बस अँगूठा दान करते रह गये और गुरुओं की कृपायें मौन हैं......
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नफ़रत को भी इस बात का इमकान है शायद। इन्सान मुहब्बत से परेशान है शायद।। गुलज़ार है जिस ढंग से बस्ती तो नहीं है आबाद यहाँ पर कोई शमशान है शायद।। डरता हूँ कहीं रश्क न हो जाये ख़ुदा को घर मेरी तरह उसका भी वीरान है शायद।। ये सच है कि तू ही मेरी उलझन की वजह है तू ही मेरे तस्कीन का सामान है शायद।। इस नाते मुबर्रा है तलातुम से ज़हां के घर उसका अज़ल से ही बियावान है शायद।। नफ़रत/घृणा इमकान/अंदेशा, सम्भावना ,सामर्थ्य रश्क/ईर्ष्या वजह/कारण तस्कीन/सुकून, शांति,राहत मुबर्रा/उदासीन, विरक्त, निस्पृह तलातुम/लहरें, उठापटक, उथल पुथल अज़ल/सृष्टि के आरम्भ से बियावान/जंगल, जन शून्य, निर्जन सुरेश साहनी कानपुर
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अगर वो था नहीं तहरीर ही में। तो बेहतर था न आता ज़िन्दगी में।। किनारा बन के मुझसे दूर रहता मुहब्बत को बहा देता नदी में।। न उस से दूर रहते कैफ़ सारे न ग़म हँसते हमारी हर खुशी में।। खुशी रहती है चारो ओर अपने नहीं दिखती है मन की तीरगी में।। सदाक़त से उन्हें मतलब कहाँ है कमी जो देखते हैं साहनी में।। तहरीर/भाग्य लेख कैफ़/आनंद तीरगी/अँधेरा सदाक़त/सच्चाई,खरापन, मन की पवित्रता सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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किसी के पास आना चाहती थी। कि ख़ुद से दूर जाना चाहती थी।। तबस्सुम दब गयी तो किस वजह से वो लड़की खिलखिलाना चाहती थी।। मिली थी जिस क़दर ख़ामोश होकर यक़ीनन कुछ बताना चाहती थी।। ये ऐसा दौर है इसमें ग़लत क्या अगर वो आज़माना चाहती थी।। अभी भी मुझमें कुछ बदला नहीं है मुझे वो क्या बनाना चाहती थी।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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कल का पूरा दिन हिंदी भाषा के नाम रहेगा। केवल कल के दिन सबको हिंदी से काम रहेगा।। केवल कल के दिन हम सब हिंदी की बात करेंगे फिर हिंदी पर एक वर्ष तक पूर्ण विराम रहेगा।। कल लिसनिंग होगी हिंदी हिंदी में टॉक करेंगे। वर्क करेंगे हिंदी में हिंदी में वॉक करेंगे।। हिंदी भाषा से माता कहलाएगी कल दिन भर कथक नहीं कल हिंदी में हम डिस्को रॉक करेंगे।। ड्रिंक नहीं कल केवल कोला पीकर दिन काटेंगे। कल का सारा दिन पिज़्ज़ा बर्गर के बिन काटेंगे।। कल बच्चों के कॉन्वेंट को विद्यालय बोलेंगे कल हिंदी में दिवस प्रहर घण्टा पल छिन काटेंगे।। केवल कल के दिन हम हिंदी का गुणगान करेंगे। कल केवल हम अपनी हिंदी का सम्मान करेंगे।। इंगलिश वालों को डोनेशन तो हरदम देते है एक दिवस हिंदी को भी सौ दो सौ दान करेंगे।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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हो गयी गुम आपकी तस्वीर फिर। मिट गई है वस्ल की तहरीर फिर।। वस्ल/मिलन तहरीर/भाग्य लेख इस तरह रूठी है मुझसे ज़िन्दगी कब्र की दिखने लगी शहतीर फिर।। शहतीर/लकड़ी की बीम या लट्ठा हाँ दवा को वक़्त कुछ कोताह था फ़ातिहा पे कर न दे ताख़ीर फिर।। कोताह/कम फ़ातिहा/श्राद्ध वचन ताख़ीर/विलम्ब उलझनों से खाक़ आज़ादी मिली मिल गयी पैरों को इक ज़ंज़ीर फिर।। देर से आया मगर आया तो मैं रख ले मौला अपना दामनगीर फिर।। दामनगीर/परमात्मा का शरणार्थी सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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कोई बच्चा क्यों करेगा खेलने खाने की ज़िद। जो अभी से कर रहा है कर्बला जाने की ज़िद।। बादशाहों औरतों बच्चों की ज़िद से भी बड़ी ख़ुद पे आ जाये तो समझो एक दीवाने की ज़िद।। है भरम में शेख़ वो मयखाने कर देगा तबाह और उसे बेख़ुद करेगा है ये मयखाने की ज़िद।। ज़िद वो परमानन्द से मिलने की लेकर चल दिये आप करिये अब जलाने या कि दफनाने की जिद ।। ख़ुद नुमाइश में भले शम्मा जले है रात पर देखने लायक फ़क़त होती है परवाने की ज़िद।। एक दिन ख़ुद छोड़ देगी ज़िन्दगी तनहा तुम्हें किस भरम में कर रहे हो सब को ठुकराने की ज़िद।। घूमता है सर हथेली पर लिए अब चार सू साहनी में आ गयी है एक मस्ताने की ज़िद।। साहनी सुरेश कानपुर 9451545132
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ख़ुदा से अगर आशनाई नहीं है। तो बन्दों से भी कुछ बुराई नहीं है।। तो क्या खाक़ जन्नत से होगा तआरुफ़ अगर मयकदे तक रसाई नहीं है।। ये टीका ओ टोपी का मतलब ही क्या है तबीयत अगर पारसाई नहीं है।। अगर हैं मुहब्बत में बदनामियाँ भी तो नफ़रत में भी कुछ बड़ाई नहीं है।। हमें जिसका डर तू दिखाता है नासेह ख़ुदा है वो कोई कसाई नहीं है।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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कुछ क्या खाक़ कमा पाये हम। जो था मिला लुटा आये हम।। इस दुनिया की चकाचौंध में आंखें लेकर अन्हराये हम।। सागर में ज्यूँ बूंद सरीखे अहंकार में उफनाये हम।। भूल गये थे जग मरघट है तन फ़ानी पे इतराये हम।। दुनिया मुट्ठी में कर ली थी किन्तु चले कर फैलाये हम।। अन्तर्मन की मैल न छूटी कितना ख़ुद को नहवाये हम।। जब बाबुल घर ही जाना था फिर पीहर क्यों कर धाये हम।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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जाने कब से थी रिश्तों में कड़वाहट ठंडक औ सीलन पास सभी मिल कर बैठे तो मानो इनको धूप मिल गयी।। उपहारों में घड़ियां देकर हमने बस व्यवहार निभाया कब अपनों के साथ बैठकर हमने थोड़ा वक्त बिठाया जब अपनों को समय दिया तो बंद घड़ी की सुई चल गई।। कृत्रिम हँसी रखना चेहरों पर अधरों पर मुस्कान न होना सदा व्यस्त रहना ग़ैरों में पर अपनों का ध्यान न होना साथ मिला जब स्मृतियों को मुरझाई हर कली खिल गयी।। फिर अपनों को अस्पताल में रख देना ही प्यार नहीं है अपनेपन से बढ़कर कोई औषधि या उपचार नहीं है छुओ प्यार से तुम्हें दिखेगा उन्हें जीवनी शक्ति मिल गयी।। सुरेश साहनी,kanpur