ये ग़ज़ल कितनी पुरानी है ।
हाँ मगर अब भी सुहानी है।।

हम इसे कैसे सही ,माने
इसमें राजा है न रानी है।।

मैं ज़रा आश्वस्त हो जाऊँ
आपको कब तक सुनानी है।।

इश्क़ में जां तक लुटा देना
मर्ज़ अपना ख़ानदानी है।।

ये मेरी तुरबत नहीं यारों
ज़िन्दगी की राजधानी है।।

दोस्ती से आजिज़ी क्यों हो
ज़िन्दगी भर ही निभानी है।।

आज सागर हाथ आया है
आज मौसम शादमानी है।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा