तू कैसी भी नजर से देख जालिम
तेरा हर तीर दिल पर ही लगे है।
ये कैसी बेखुदी है,क्या नशा है
कि तू ही तू नज़र आती लगे है।।
गली आबाद हो जिसमे तेरा घर
बहारों की गली जैसी लगे है।।
तेरा नज़रे-करम जबसे हुआ है
तू अपनी है नही अपनी लगे है।।
किसी भी गैर के पहलू में दिखना
हमारी जान जाती सी लगे है।।
हया हो ,शोखियाँ हो या लड़कपन
तुम्हारी हर अदा अच्छी लगे है।।
तेरा हर तीर दिल पर ही लगे है।
ये कैसी बेखुदी है,क्या नशा है
कि तू ही तू नज़र आती लगे है।।
गली आबाद हो जिसमे तेरा घर
बहारों की गली जैसी लगे है।।
तेरा नज़रे-करम जबसे हुआ है
तू अपनी है नही अपनी लगे है।।
किसी भी गैर के पहलू में दिखना
हमारी जान जाती सी लगे है।।
हया हो ,शोखियाँ हो या लड़कपन
तुम्हारी हर अदा अच्छी लगे है।।
Comments
Post a Comment