गजल

सत्य यही है सत्य शाह है।
झूठ किन्तु अब शहंशाह है।।
सच्चे अब फिरते हैं दर-दर
झूठों को मिलती पनाह है।।
अब सच कहते डर लगता है
गोया सच कहना गुनाह है।।
जो था कल लंका का रावण
आज अवध का बादशाह है।।
शकुनि हैं जितने सम्मानित
धर्मराज उतने तबाह है।।
अब दलाल एजेंट कहाते
बिचौलियों की वाह वाह है।।
कैशलेस है कैश कहाँ है
मेहनतकश की आह आह है।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा