वो सलामे-इश्क़ था या और कुछ।
शोर महफ़िल नें मचाया और कुछ।।
यकबयक उठ कर निगाहें झुक गयी
वज्म ने मतलब लगाया और कुछ।।
जल उठे नाहक़ रकाबत में सभी
था मेरे हिस्से में आया और कुछ।।
हमने अर्जी दी थी गोशे-यार की
वक्त ने हमको थमाया और कुछ।।
वो उम्मीदन मेरी मैयत में मिलें
वक्त हम करते हैं ज़ाया और कुछ।।
लोग जो कहते हैं कैसे मान लें
हमको उसने है बताया और कुछ।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है