गजल

कौन कहता है किसे चाँद और सूरज चाहिए।
जगह आख़िर में सभीको सिर्फ़ दो गज चाहिए।।
हश्र में आमाल के काग़ज़ तो मैं पहचान लूँ
लिखने वाले हमको तक़दीरों के काग़ज़ चाहिए।।
हम जहाँ चाहे रहें मरकज़ मेरी मोहताज़ है
यूँ सहारे के लिए हरएक को मरकज़ चाहिए।।
सादगी और साफगोई अब किसे स्वीकार है
हर किसी को अब दिखावा और सजधज चाहिए।।

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