अब नया सूरज निकलने से रहा।

दर्द का मौसम बदलने से रहा।।


इश्क़ में तासीर कल की बात है

आह से पत्थर पिघलने से रहा।।


होश गोया मयकशी में कुफ़्र है

लड़खड़ा कर दिल सम्हलने से रहा।।


आपके आने से अब क्या फायदा

दिल जवानों सा मचलने से रहा।।


खून ठंडा है रगों में क्या कहें

अश्क आंखों में उबलने से रहा।।


सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है