क्यों लगे है मुझे ज़हां तन्हा।

राह तन्हा है कारवां तन्हा।।


लोग तो और भी गये होंगे

मैं ही जाऊंगा क्या वहाँ तन्हा।।


चाँद ने जाके हाथ थाम लिया

जब लगा है वो आसमां तन्हा।।


दूर तक हैं निशान कदमों के

इनमें है कौन सा निशां तन्हा।।


दर्दो ग़म और आपकी यादें

कब रहा जिस्म का मकां तन्हा।।


सुरेश साहनी कानपुर

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