इश्क़ के दरियाब में उलझे रहे।
उम्र भर इक ख़्वाब में उलझे रहे।।
फिर मग़ज़ से काम ले पाये ही कब
बस दिले बेताब में उलझे रहे।।
कैसे मिल पाते भला लालो-गुहर
हम तेरे पायाब में उलझे रहे।।
हैफ़ हम तस्कीने-दिल को छोड़कर
ख़्वाहिशे-नायाब में उलझे रहे।।
गर्दिशों में हम रहे हैं शौक़ से
मत कहो गिरदाब में उलझे रहे।।
दरियाब/नदी, मगज़/दिमाग, लालो-गुहर/हीरे मोती
पायाब/उथलेपन, कम पानी, तस्कीने-दिल/,दिल का आराम, ख़्वाहिश/इच्छा, नायाब/दुर्लभ, गर्दिश/संकट,चक्कर, गिरदाब/भँवर
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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