जिस्म कोई मकान है शायद।

रूह इक मेहमान है शायद ।।


दर हक़ीक़त ख़ुदा ज़मीं पर है

ये जहाँ आसमान है शायद।।


कम-सुखन हुस्न तो नहीं होता

इश्क़ ही बेज़ुबान है शायद।।

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