लग गया दिल या लगाया क्या कहें।
फिर गया दिल या कि आया क्या कहें।।
किसलिये थिरके कदम बेसाख़्ता
क्या हवाओं ने सुनाया क्या कहें।।
ग़ैर अपना क्यों लगे है आजकल
दिल हुआ कैसे पराया क्या कहें।।
नींद पर पलकों का पहरा तोड़कर
ख्वाब में कैसे समाया क्या कहें।।
दुश्मनों को ज़ेब देती है मगर
आपने भी आज़माया क्या कहें।।
मैं ख्यालों में हँसा तो किसलिये
कौन मुझमें मुस्कुराया क्या कहें।।
साहनी ने जो न देखा था कभी
इश्क़ ने वो दिन दिखाया क्या कहें।।
सुरेश साहनी कानपुर
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