ये नहीं है कि प्यार है ही नहीं।
दरअसल वो बहार है ही नहीं।।
वो तजस्सुस कहाँ से ले आयें
जब कोई इंतज़ार है ही नहीं।।
फिर मदावे की क्या ज़रूरत है
इश्क़ कोई बुख़ार है ही नहीं।।
क्यों वफ़ा का यक़ी दिलायें हम
जब उसे एतबार है ही नहीं।।
मर भी जायें तो कौन पूछेगा
अपने सर कुछ उधार है ही नहीं।।
आपकी फ़िक्र बेमआनी है
साहनी सोगवार है ही नहीं।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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