जिसे मैंने समझा उज़ैर है।

मुझे क्या पता था वो ग़ैर है।।


हुआ सर निगूँ  तेरे वास्ते

क्या गरज़ हरम है कि दैर है।।


मुझे बातिलों में खड़ा मिला

जिसे सब कहे थे ज़ुबैर है।।


तू जो साथ है वही जीस्त है

है तो मर्ग तेरे बग़ैर है।।


है तेरी रज़ा में मेरी रज़ा

तेरे ख़ैर में मेरी ख़ैर है।।


सुरेश साहनी, कानपुर


उज़ैर/सहारा, सहायक

सर निगू/ सर झुकाना

दैर-हरम/मंदिर मस्जिद

बातिल/ झूठा बेईमान

ज़ुबैर/ योद्धा

जीस्त/ ज़िन्दगी

मर्ग/मृत्यु

रज़ा/सहमति

ख़ैर/ बरक़त

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