ये दुनिया है फ़क़त हरजाईयों की।

किसे है फ़िक्र हम सौदायियों  की।।


थका हूँ आज मिलकर मैं ही ख़ुद से

ज़रूरत है मुझे तन्हाइयों की।।


मैं मरता नाम की ख़ातिर  यक़ीनन

कमी होती अगर रुसवाईयों की।।


अँधेरों में कटी है ज़िंदगानी

नहीं आदत रही परछाइयों की।।


गले वो दुश्मनों के लग चुका है

ज़रूरत क्या उसे अब भाईयों की।।


लचक उट्ठी यूँ शाखेगुल वो मसलन

तेरी तस्वीर हो अंगड़ाईयाँ की।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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