ज़ुल्म भी इन्तेहा तक ही कर पाओगे।
हद से ज़्यादा भला ज़ुल्म क्या ढाओगे।।
आईने कब से तारीफ़ करने लगे
देखकर ख़ुद पे ख़ुद तो न इतराओगे।।
तुम हो दुश्मन फ़क़त ज़िन्दगी तक मेरी
बाद मेरे तो तुम ख़ुद ही मर जाओगे।।
ख़ुद उलझते चले जाओगे बेतरह
सोचते हो जो औरों को उलझाओगे।।
दर्द का हद से बढ़ना दवा ही तो है
ऐसी हालत में क्या तुम न झुंझलाओगे।।
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