वो आशना था मगर अजनबी लगा मुझको। रहा तो दिल में मगर ग़ैर भी लगा मुझको।। अज़ाब क़ुर्बतों में उसकी जो मिले यारब उसे कहाँ से कहूँ ज़िन्दगी लगा मुझको।।साहनी
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Showing posts from November, 2024
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इश्क़ था जबकि छलावा तेरा। दिल को भाता था दिखावा तेरा।। झूठ था फिर यकीं लायक था दरदेदिल का वो मदावा तेरा।। आजमाऊँ तो ख़ुदा झूठ करे जाँनिसारी का ये दावा तेरा।। मैं नहीं कोई बहक सकता था इतना सुंदर था भुलावा तेरा।। जबकि मक़तल ही था मंज़िल अपनी इक बहाना था बुलावा तेरा।। ऐ ख़ुदा तू है अगर कुजागर तो ये दुनिया है कि आँवा तेरा।। साहनी ही तो गुनहगार नहीं उसमें पूरा था बढ़ावा तेरा।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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पुष्प पथ में बिछाये हैं रख दो चरण। आपसे स्नेह का है ये पुरश्चरण।। प्रीति के पर्व का यह अनुष्ठान है दृष्टि का अवनयन लाज सोपान है सत्य सुन्दर की सहमति है शिव अवतरण।। पुष्प पथ में बिछायें हैं रख दो चरण।। कुछ करो कि स्वयम्वर सही सिद्ध हो सिद्धि हो और रघुवर सही सिद्ध हो शक्ति बन मेरे भुज का करो प्रिय वरण।। पुष्प पथ में बिछायें हैं रख दो चरण।। ओम सत्यम शिवम सुन्दरम प्रीति हो युगयुगान्तर अमर प्रीति की कीर्ति हो लोग उध्दृत करें राम का आचरण।। पुष्प पथ में बिछायें हैं रख दो चरण।।
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लगे जा रहे ट्रेनों में स्पेशल डिब्बे। कम होते जा रहे दिनोदिन जनरल डिब्बे।। बरसातों में ट्रेन हो रही पानी पानी गर्मी में होते हैं निरे निराजल डिब्बे।। इतनी नफ़रत बाँट रही है आज सियासत कहीं न चलवा दें ये सब कम्यूनल डिब्बे।। डिब्बे कुछ बेपटरी भी होते रहते हैं क्यों होने लगते है बेसुध बेकल डिब्बे।। लगती रहती है ट्रेनों में आग निरन्तर क्यों न ट्रेन के साथ लगा दें दमकल डिब्बे।। कभी पिता सी गोद बिठा कर सैर कराते चले ट्रेन तो लगते माँ के आँचल डिब्बे।। क्या ऐसा होगा जब इंजन नहीं रहेंगे क्या होगा जब रह जायेंगे केवल डिब्बे।। सुरेश साहनी, कानपुर
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अब नया सूरज निकलने से रहा। दर्द का मौसम बदलने से रहा।। इश्क़ में तासीर कल की बात है आह से पत्थर पिघलने से रहा।। होश गोया मयकशी में कुफ़्र है लड़खड़ा कर दिल सम्हलने से रहा।। आपके आने से अब क्या फायदा दिल जवानों सा मचलने से रहा।। खून ठंडा है रगों में क्या कहें अश्क आंखों में उबलने से रहा।। सुरेश साहनी, कानपुर
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इश्क़ माना कि मुद्दआ तो था। हुस्न भी ख़ुद में मसअला तो था।। ज़ख़्म दिल पर भले लगा तो था। उस ख़लिश में मगर मज़ा तो था।। सुन लिया शख़्स बेवफा तो था। इश्क़ वालों का आसरा तो था।। हाल सबने मेरा सुना तो था। कौन रोया कोई हँसा तो था।। क्या कहा सच ने खुदकुशी कर ली क्या कहें कल से अनमना तो था।। जाल फेंका था फिर वही उसने मेरे जैसा कोई फँसा तो था।। मान लेते हैं तुम नहीं कातिल क़त्ल मेरा मगर हुआ तो था।। उसमें ढेरों बुराईयाँ भी थी साहनी आदमी भला तो था।। सुरेश साहनी कानपुर
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लग गया दिल या लगाया क्या कहें। फिर गया दिल या कि आया क्या कहें।। किसलिये थिरके कदम बेसाख़्ता क्या हवाओं ने सुनाया क्या कहें।। ग़ैर अपना क्यों लगे है आजकल दिल हुआ कैसे पराया क्या कहें।। नींद पर पलकों का पहरा तोड़कर ख्वाब में कैसे समाया क्या कहें।। दुश्मनों को ज़ेब देती है मगर आपने भी आज़माया क्या कहें।। मैं ख्यालों में हँसा तो किसलिये कौन मुझमें मुस्कुराया क्या कहें।। साहनी ने जो न देखा था कभी इश्क़ ने वो दिन दिखाया क्या कहें।। सुरेश साहनी कानपुर
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इश्क़ के दरियाब में उलझे रहे। उम्र भर इक ख़्वाब में उलझे रहे।। फिर मग़ज़ से काम ले पाये ही कब बस दिले बेताब में उलझे रहे।। कैसे मिल पाते भला लालो-गुहर हम तेरे पायाब में उलझे रहे।। हैफ़ हम तस्कीने-दिल को छोड़कर ख़्वाहिशे-नायाब में उलझे रहे।। गर्दिशों में हम रहे हैं शौक़ से मत कहो गिरदाब में उलझे रहे।। दरियाब/नदी, मगज़/दिमाग, लालो-गुहर/हीरे मोती पायाब/उथलेपन, कम पानी, तस्कीने-दिल/,दिल का आराम, ख़्वाहिश/इच्छा, नायाब/दुर्लभ, गर्दिश/संकट,चक्कर, गिरदाब/भँवर सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132